अब मै कुछ
नहीं कहूँगा
कुछ भी नहीं
एक लफ्ज़ भी नहीं निकालूँगा
क्योंकि अलफ़ाज़ परेशान करते हैं
छीन लेते चैन
सुकून
दिल का आराम
न जाने क्यों रात भी आती है
हर वक़्त दिन होता तो
कमी नहीं महसूस होती
तपता सूरज कुछ और सोचने नहीं देता
कुछ और कहने नहीं देता
मगर फिर ज़ुबान चुप कहाँ रह सकती है
मै कुछ नहीं कहना चाहता मगर फिर भी
कुछ लफ्ज़ फिसल कर उस किनारे चले जाते हैं
लेकिन अब मै कुछ नहीं कहूँगा
कुछ नहीं
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