बहुत अजीब लगता है
अपने हाथ कुछ अपना उजाड़ना
सिर्फ इसलिए कि कहीं नयी ज़मीन पर
कुछ नया बसाना हो
पर क्या करें कि
कभी हालात सुधारने के लिए
कुछ मुश्किल फैसले लेने पड़ते हैं
शायद उसमे भी नुक्सान अपना ही होगा
मगर नफे नुक्सान कि परवाह करना एक बात
है, और
हर रोज़ दोराहे पर खड़े हो के फैसले
करना दूसरी बात
बस यही लगता है कि आगे बढ़ने का नाम ही
ज़िन्दगी है
पता नहीं
पता नहीं
क्या ऐसा सिर्फ मुझे लगता है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें