गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

ग़ज़ल

मुझे बस इतना कहना है कि मुझे बोलने दो
मेरी बात भी सुन लो कभी खुदा के लिए

बरस पड़ो ना मुझ पे, ना गरजो बादल की तरह
मेरी राय भी ले लो कभी सजा के लिए

बला का ज़ोर है तूफ़ान में जब वो उठता है
मेरी रूह तड़पती है जब वफ़ा के लिए

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