बुधवार, 22 दिसंबर 2010

ग़ज़ल

बहुत दिन बाद आएगी मुझे चैन की नींद 
आज मालूम हुआ मुझे  कि अब खोने को कुछ ना रहा 

मेरे आंसूं भी आज हैरान है मुझे देख कर 
जाने क्या हुआ जो अब रोने को कुछ ना रहा

तुम्हारा बाद अब बस इतनी आसानी है मुझे
अब कोई ख्वाब संजोने को कुछ ना रहा 

बहुत हल्का है अब उम्मीदों का बोझ
एक बोझ उतर गया तो अब ढोने को कुछ ना रहा


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