हम ख़याल
गुरुवार, 16 दिसंबर 2010
ग़ज़ल
एक तुमसे ही कुछ उम्मीद थी पर ये क्या जाना
आज तुमने भी कह दिया कि अब नज़र ना आना
लोग ज़ालिम है उन के ताने मैंने सुन थे लिए
तू तो अपना था मगर तूने मुझे क्या जाना
अब खोने को बचा क्या है ,अब है कैसा डर
जो खोया तुमको तो अब मुझको है क्या पाना
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