रविवार, 19 दिसंबर 2010

ग़ज़ल

हर घड़ी तुम्हारा झगड़ना भुला ना पाउँगा
जहाँ भी जाऊंगा ये याद ले के जाऊंगा

मेरा मोल मुझे खो कर ही समझ पाओगे
जब तुम बुलाओगे मै ना आऊंगा

कई बार होता है कुछ जो समझ नहीं आता
दास्ताँ फिर ना मै अब ये सुनाऊंगा

कोई टिप्पणी नहीं: