गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

कविता

दिल कि बातें दिल में रखो
दिल को मत समझाओ तुम

बात बड़ी हो या हो छोटी
उस से दिल ना लगाओ तुम

उलझो तो फिर सुलझाओ
रूठो जब फिर मनाओ तुम

मेरे आगे मेरे पीछे
आओ ना फिर जाओ तुम

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