रात को जब नींद नहीं आती
अजीब अजीब सपने आते हैं
घने जंगल में
किसी के चीखने के सपने
धूल भरी आँधियों के सपने
तपते सूरज में जलने के सपने
फिर वो चले भी जाते हैं
जैसे मकसद सिर्फ मुझे डराना हो
मुझे डर भी लगता है उस वक़्त
बहुत ज्यादा
मगर फिर आंधियां रूक जाती
चीखने का शोर थम जाता है
तपता सूरज ठन्डे चाँद में तब्दील हो जाता है
और फिर मुझे नींद आ जाती है...
भला ऐसी लोरी
मुझे रोज़ क्यों सुननी पड़ती है
जो बिलकुल भी मीठी नहीं लगती...
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर भाव ...आपका आभार
shukriya..!
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