शनिवार, 30 सितंबर 2017

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
भीड़ में
अकेले में,
तब भी जब मैं कुछ और सोच रहा हूँ,
तब भी जब मैं कुछ और कर रहा हूँ,
ताकि तुम्हें  कभी ये न लगे
कि मैं सुन नहीं रहा ,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें,
जब तुम बोल रही हो,
तब भी जब तुम खामोश हो,

तब जब तुम कुछ कहने का इंतजार कर रही हो,
और तब भी जब कोई नई बात चल रही है तुम्हारे अंदर,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
सर्दी के मौसम में धूप में बालकनी में बैठ कर,
मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
गर्मी की दोपहर में
पसीने से तर बतर ,
मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
बारिश में भीगते हुए किसी पेड़ के नीचे,

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
उम्र के तीसवें 
चालीसवें
पचासवें साल में 
उसी तरह जैसे
ग़ौर से सुन रहा था तुम्हें
उस पहले दिन जब हम मिले थे,

मैं सुनना चाहता हूँ तुमसे
किस्से कहानियाँ
मुहब्बत की दास्तानें
कविताएँ जो मैंने लिखी
तुम्हारी ज़ुबानी

मैं सुनना चाहता हूँ
तुम्हें
तुम्हारे गुस्से को
तुम्हारे प्यार को
तुम्हारी तकलीफ को
तुम्हारी घबराहट को
तुम्हारे सपनों को
तुम्हारी यादों को

मैं सुनना चाहता हूँ तुम्हें
हर रोज़
सुबह शाम
रात दिन
बिना थके
बिना रूके

मैं साथी हूँ
तुम्हारी बातों का

तुम साथी हो
मेरी बातों की

मैं और तुम
जब बन जायेंगे
एक किस्सा कहानी
जिसे सुनायेगी हमारी बेटी
अपने बच्चों को

और कहेगी 
कि वो दोनों खूब बातें किया करते थे,
बातें जो कभी खत्म नहीं हुई ,
इस तरह जिये वो दोनों
बातों को सुनते
कहते
करते
जीते
मरते ।।

____शाहिद अंसारी

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

मैं क्या करता ?

मैं क्या करता ?

मैंने रात भर अफसाने पढ़े,
दो नज़्में लिखी,
एक सिरहाने रखकर,
दूसरी दिल से लगा के सो गया ।

जब सुबह उठा,
तो सिरहाने की नज़्म मुरझा गयी थी।
मैंने उसे डस्टबिन में फेंक दिया।

और फिर देखता रहा
उसे थोड़ी देर,
क्या ये वही नज़्म थी?
दिल पर रखी नज़्म ने
दिल पर कुछ निशान डाल दिया था।

मैंने सोचा कि
नहाकर ये निशान मिटा दूँ।
पानी की बूँदों से
दिल के वर्क खुल गये,

पर वो निशान और
गहरे हो गये,
लाल सुर्ख चमकीले
किसी नये बने टैटू की तरह ।

____ शाहिद अंसारी

ग़ज़ल,

ये रियाया बस थोड़ी सी रियायत चाहती है,
ज़ालिम वो कहता है कि बग़ावत चाहती है ।।
मुश्किलों से हार कर जब ये चीखे है ज़ार ज़ार,
शहंशाह को लगता है कि अदावत चाहती है।।
डर कर ये जब लगाये है, बचाने की गुहार,
अहले हुकूमत कहते हैं कि मज़म्मत चाहती है।।

______शाहिद अंसारी 

ग़ज़ल,

दिलकश हैं दिलफरेब हैं दुनिया के मशगले/
आओ न मेरी जाँ तुम्हें कहीं और ले चलें।।
देखो न आसमाँ में वो चाँद कैसा है/
है चाँदनी जिधर तुम्हें उस ओर ले चलें।।
देहली की इन गलियों से उकता गयी हो तुम/
बहलाने को फिर दिल तुम्हें लाहौर ले चलें।।
कहता हूँ इतने प्यार से तो मान जाओ ना /
अच्छा नहीं लगता है कि पुरज़ोर ले चलें।।

____शाहिद अंसारी

बकवास बहुत ज़रूरी है,

बकवास बहुत ज़रूरी है,

कोरी बकवास,
अधूरी बकवास,
या फिर पूरी बकवास,

दिमाग़ का जो खालीपन है,
उसे बकवास ही भर सकती है,

अंग्रेज़ी में जिसे कहते हैं क्रैप,
एक लगातार बोली जाने वाली
अर्थहीन बात,

या फिर जिसका अर्थ ऐसा हो
जिसका ना होना ही बेहतर होता,

पर ये होती रहती है,
बार बार, लगातार
घंटों तक चलती है,

कभी मीटिंग में,
कभी सीटिंग में,
कभी धर्म के नाम पर,
कभी कर्म के नाम पर,
पिलाये जाते हैं बकवास के घूंट,
पी कर मदमस्त हो जाते हैं लोग,
और फिर उड़ेलते हैं
वही बकवास जो पचती नहीं है उनको,
दूसरों को छलनी कर देते हैं,

एक दुर्गंध जो फैल रही है
हर रोज़ फिज़ा में,
ये उस फैक्ट्री से निकल रही है
जहाँ ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है,
पर्यावरण में प्रदूषण है,
दिमाग में और ज्यादा है,

एक दिन कूड़े का ये ढेर
ढह जायेगा,
और भर जायेगा हमारे घरों
के अंदर,
वो हर पाक साफ जगह
को दूषित कर देगा,
वक्त कम है,
समस्या बड़ी है,
बकवास इस समय की सबसे मुश्किल घड़ी है।

______शाहिद अंसारी

सरकार

सरकार कितनी होनी चाहिए?
सरकार होनी चाहिए,
शिक्षा में ज़्यादा,
स्वास्थ्य में ज़्यादा,
ताकि मिल सकें उन्हें
भी शिक्षा और स्वास्थ्य का लाभ,
जो खुद नहीं कर सकते
इसका इंतजाम।
सरकार कहाँ होनी चाहिए?
सरकार होनी चाहिए
आसमान पर कम,
ज़मीन पर ज़्यादा,
ताकि नज़र आये
वो जो आईवरी टॉवर से नहीं दिखता ।
सरकार नज़र आनी चाहिए
लोगों को
सिर्फ़ दूर से नहीं बल्कि पास से,
सरकार जिसे लोग छू सकें
महसूस कर सकें,
बता सकें अपनी बात।
सरकार जब नहीं दिखती तो
बिचौलिए दिखते हैं,
टार्च लेकर दिखाते हैं
कि देखो सरकार उधर बैठी है।
सरकार को फर्क पड़ना चाहिए,
सिर्फ आपदा में नहीं,
सिर्फ युद्ध में नहीं,
शांतिकाल में भी,
सरकार कम होनी चाहिए,
हमारे घरों में,
दर ओ दीवार में,
सरकार होनी चाहिए
मौजूद हमारे खेतों में,
खलिहानों में,
मंडियों में,
ये देखने कि क्या उग रहा है,
क्यों उग रहा है,
क्या बिक रहा है,
क्यों बिक रहा है,
जो बिक रहा है वो ख़ालिस है या नहीं
जो उग रहा है वो ख़ालिस है या नहीं,
उसकी नज़र होनी चाहिए
खाने की क्वालिटी पर,
सरकार होनी चाहिए सड़क पर
ताकि कोई राह चलते न मरे ।
सरकार होनी चाहिए जंगल में
ताकि बचे रहे जंगल ।
सरकार होनी चाहिए नदी में
ताकि बाढ़ से निपट सके,
सरकार होनी चाहिए बार्डर पर
ताकि कोई अंदर न आ सके,
सरकार होनी चाहिए बैंक में
ताकि हमारा धन सुरक्षित हो,
सरकार होनी चाहिए
हर उस जगह जहाँ
उसे होना चाहिए,
लोगों के लिए,
सरकार के होने चाहिए कान
जो सुन सकें गड़बड़,
और हाथ जो बंधे न हों ।
सरकार होनी चाहिए
धर्म से कोसों दूर
और कर्म के बिल्कुल पास ,
सरकार पर होना चाहिए
भरोसा लोगों का,
सरकार को होना चाहिए
भरोसा लोगों पर,
सरकार हाड़ मांस की
बनी होनी चाहिए,
जिसके दिल में धड़कता हो दिल ,
और जिसकी चमड़ी अभी मोटी
न हुई हो ।

_____शाहिद अंसारी

ग़ज़ल,

आईना शौक का, वो टूट गया,
वक्त शीरीं था जो, वो छूट गया ।।
ग़म ए दुनिया ने, मसरूफ रखा,
ख्वाब बुलबुला सा,वो फूट गया ।।
हमने रहबर बनाया था उसको,
काफ़िला मेरा था, वो लूट गया ।।

____शाहिद अंसारी
मेरे हिस्से की चाँदनी ले जा ,
अंधेरा दे के , रोशनी ले जा ।।
अपनी कड़वाहट यहाँ रख दे,
इन होठों की चाशनी ले जा ।।

____शाहिद अंसारी
ढह रहा है मेरे सीने में,
वो उजड़ा मकान जो तेरा था ।।
जब तु ही नहीं है मेरा,
दिल में क्या फिर मेरा था ।।

____शाहिद अंसारी
जो जल रहा है सीने में, 
कहीं ये दिल तो नहीं है ।।

_____शाहिद अंसारी

थकान

मैं थका हुआ
इक जिस्म हूँ,
जिसमें एक डरी हुई रूह
इंतज़ार कर रही है,
मौत का ।।
वो आयेगी
बिना बताये
बिना हलचल के
आराम देने ।।
ये थकान एक दिन
की नहीं
वर्षों की एक टीस है,
जो जमा हो रही है,
रोज़ थोड़ी ज़्यादा ।।
रूह छलनी है
कौन कहता है
कि रूह नज़र नहीं आती ?
वो दिखती तो है,
जिग़र
में घुलते खून में ।।

_____शाहिद अंसारी

मेरे रात दिन

मुझे चाह थी कि तु आये फिर,
रोये और मुझको रूलाये फिर,
मुझे ग़म है बस इसी चाह में,
क्यों गुज़र गये, मेरे रात दिन ।।

तुझे जाग जाग के था देखता,
मुझे होश कुछ अपना न था,
मैं पुकारता था चला गया,
हर मोड़ पर तुझे रात दिन ।।

मुझे शक नहीं है यकीन है,
ये दुनिया बहुत ही हसीन है,
मेरी ज़िन्दगी है मुझे ढूंढती,
हर मोड़ पर मुझे रात दिन ।।

_____ शाहिद अंसारी

गुरुवार, 31 अगस्त 2017

तुम्हारी बात

तुम कहो कि रूक जाओ,
तो मैं रूक जाता,
तुम कहो तो सही।

पर तुमने कहा,
कि मैं क्यों कहूँ,

हर बार मैं ही क्यों?

जानूँ,
पर मुझे पता कैसे चलेगा?
कि तुम चाहती हो
कि मैं रूक जाउँ,

क्या तुम मेरी आँखें
नहीं पढ़ सकते?
क्या तुम्हें सच में
नहीं दिखती ?
ये बेकरारी
ये दीवानापन

चले ही जाओ तुम।

या खुदा कोई
मुझे बताये
कि तुम्हारे
ऐसा कहने पर मैं कैसे चला जाउँ?

क्या तुम्हें लगता है
कि तुमसे दूर जाना
आसान है मेरे लिए?

तुम्हें पता भी है,
कि तुमसे दूर अकेले में
जब मेरी सिसकियाँ निकलती हैं
तो घर की दीवारें
भी रोती हैं मेरे साथ ।

तुम फरेबी हो
ऐसी झूठी बातें कह कर
मुझे बहला लेते हो,

तुम क्यों रोने लगे भला ?
तुम्हें तो आज़ादी मिल जाती है,
कि चलो बला टली,

जानू
तुमने वो शेर नहीं
सुना है
किसी शायर ने कहा था
"रोने से और इश्क में बेबाक हो गये /
धोये गये हैं इतने कि बस पाक हो गये "

मैं तो इस बाबत
रो लेता हूँ,

हा हा हा
ये शेर कब सीखे तुमने ?

जब मैं नहीं थी तो
किसको सुनाते थे?

तुम मुझे पहले क्यों नहीं
मिले,
कॉलेज में मेरा कोई ब्यावफ्रेंड
नहीं बना,

तुम बन जाते,

हम हाथों में हाथ डाले ,
पार्क में घूमते ,
सिनेमा देखने जाते,
रेस्तरां में खाना खाते,
और खूब प्यार करते ।

अब तो करते ही हैं
हम ये सब,

टूट कर प्यार
प्यार का इज़हार
कभी इकरार
कभी इन्कार
और फिर तक़रार
और फिर प्यार

और तब

तब मैं भी तो ढूँढ रहा था तुम्हें,
तुम कहीं नज़र नहीं आयी,

तुम कह देती
कि कहाँ हो तुम
चले आओ
तो मैं आ जाता,

पहाड़ो को पार करके
एक हाथ में चाँद
एक हाथ में गुलाब लेकर ,

पर पहचानती कैसे मुझे ?
कि मैं ही हूँ?

पहचान नहीं गयी थी
उस दिन तुम्हें हुमायूँ के मकबरे पर
कि तुम ही हो,

हाँ,
ठीक कहती हो ।

मैं देर कर देता हूँ
आने में ,

मैं देर कर देता हूँ
बताने में ,
जताने में ,
सुनाने में,

जोर से हंसने में ,
तुम्हें मनाने में ,

पर यक़ीन मानों
मैं आना चाहता हूँ ,

तुम्हारे बिना कहे,
बिन बुलाये,

सच में?
तो आ जाओ ना।

______शाहिद अंसारी

आजकल की खबरें

आजकल की खबरें
हैरान करती हैं,

संतों के ऊपर
बलात्कार के आरोप लगते हैं,

संत तब भी
संत ही कहलायेंगे,
आरोपी झूठे कहलायेंगे,

क्योंकि संत सिर्फ नाम
के नहीं होते,
वो बड़े काम के होते हैं।

सेना के अधिकारी पर
आतंकवाद के आरोप लगते हैं,

बनाये जाते हैं हीरो,
आरोप झूठे होते हैं,
आरोपी झूठे होते हैं,

सच्ची होती है जनता
सच्चा होता है प्रेम,
सच्चे होते हैं प्रेमी,

क्योंकि हीरो सिर्फ
नाम के नहीं होते,
वो बड़े काम के होते हैं।

पुलिस थाने में
अपराधी मर्डर कर देते हैं,

थाने होते हैं सुरक्षित,
घर असुरक्षित होते हैं,

रक्षा कौन करता हैं?
पहले पड़ोसी करते थे,
अब सीसीटीवी करता है,

क्योंकि सीसीटीवी
सिर्फ नाम के नहीं होते,
वो बड़े काम के होते हैं।

आजकल कर्मों का कोई
महत्व नहीं है,
माया का है।

माया ठग रही है लोगों कों,
लोग ठग रहे हैं लोगों कों,
लोग चूना लगा रहे हैं,
पान में कम
ऊपर वाले को ज़्यादा।

______शाहिद अंसारी

ग़ज़ल

रिश्ता तोड़ना चाहते हो, तो तोड़ जाओ,
मेरे हिस्से की मुहब्बत,यहाँ छोड़ जाओ।।

ले जाओ अपने साथ, अपनी चाँदनी रातें,
मेरे हिस्से का आधा चाँद, यहाँ छोड़ जाओ।।

_____शाहिद अंसारी 

दो नज़्में

मैं क्या करता ?

मैंने रात भर अफसाने पढ़े,
दो नज़्में लिखी,
एक सिरहाने रखकर,
दूसरी दिल से लगा के सो गया ।

जब सुबह उठा,
तो सिरहाने की नज़्म मुरझा गयी थी।

मैंने उसे डस्टबिन में फेंक दिया।

और फिर देखता रहा
उसे थोड़ी देर,

क्या ये वही नज़्म थी?

दिल पर रखी नज़्म ने
दिल पर कुछ निशान डाल दिया था।

मैंने सोचा कि
नहाकर ये निशान मिटा दूँ।

पानी की बूँदों से
दिल के वर्क खुल गये,

पर वो निशान और
गहरे हो गये,
लाल सुर्ख चमकीले
किसी नये बने टैटू की तरह ।

_______शाहिद अंसारी 

रविवार, 20 अगस्त 2017

भूत

लोग पागल हो गये हैं,
और भूत भूत चिल्ला रहे हैं।

किसी ने उन्हें बता दिया है कि भूतों
की दाढ़ी होती है,
अब वो हर दाढ़ी वाले
को पकड़ कर पीट रहे हैं।

लोग पागल हो गये हैं,
और भूत भूत चिल्ला रहे हैं।

किसी ने उन्हें बता दिया है
कि भूत प्यार करते हैं,
अब वो हर प्यार करने वाले को
पकड़ कर पीट रहे हैं।

लोग पागल हो गये हैं,
और भूत भूत चिल्ला रहे हैं।

किसी ने उन्हें बता दिया है
कि भूत मांस खाते हैं,
अब वो हर मांस खाने वाले को
पकड़ कर पीट रहे हैं ।

लोग पागल हो गये हैं,
और भूत भूत चिल्ला रहे हैं।

किसी ने उन्हें बता दिया है
कि भूत टोपी पहनते हैं,
अब वो हर टोपी पहनने वाले को
पकड़ कर पीट रहे हैं।

लोग पागल हो गये हैं,
और भूत भूत चिल्ला रहे हैं।

किसी ने उन्हें बता दिया है
कि भूत उनके बगल में रहते हैं,
अब वो हर पड़ोसी को
पकड़ कर पीट रहे हैं।

ये कौन है जो भूत
को पहचानता है ?
ये कौन है जो
आदमी को नहीं पहचानता ।

जब सारे आदमी
मर जायेंगे,
तब भूत ही बचेंगे ।

____शाहिद अंसारी 

शब्द

मेरे चारों तरफ शब्द हैं ,
और शब्द और शब्द,

वो मुझ पर पत्तियों की
तरह बढ़ते हैं,

वो अपनी धीमी गति से
हो रही प्रगति को रोकते
प्रतीत नहीं होते ,

अंदर से, लेकिन मैं खुद
को कहती हूँ,

शब्द एक बाधा हैं,
उनसे सावधान रहिए ।

वो बहुत सी चीजे़ हो सकते हैं,
एक गहरी खाई जिसके सामने
दौड़ते पांव रुकने चाहिए।

एक समंदर जिसकी लहरें
शक्तिहीन हों,

एक जलती हुई हवा
का धमाका, या फिर
एक चाकू जो
आपके सबसे अच्छे दोस्त
का गला काटना चाहती हो,

शब्द एक बाधा हैं लेकिन ,

वो मुझ पर एेसे बढ़ते हैं,
जैसे पेड़ पर पत्तियाँ,

वो अपना आना कभी
रोक नहीं पाते,
भीतर के एक सन्नाटे से ।

लेखिका : कमला दास
अनुवाद : शाहिद अंसारी

लोग दुखी क्यों है?

लोग दुखी क्यों है?

लोग दुखी हैं ,
क्योंकि सफाई वाला सफाई नहीं करता,
दूध वाला दूध में पानी मिलाता है,
बिजली वाला बुलाने पर नहीं आता,
नाली साफ करने वाला
नाली साफ करने के तीन सौ रूपये मांगता है।

लोग दुखी क्यों हैं?
लोग दुखी हैं ,
क्योंकि बस में भीड़ है,
ऑटो वाला जाने को तैयार नहीं,
उबर पूल में सर्ज प्राईसिंग है,
और बॉस दफ्तर लेट आने पर डांटता है।

लोग दुखी क्यों हैं?
लोग दुखी हैं ,
क्योंकि रात में बिजली नहीं आती,
बिजली नहीं आती तो गर्मी लगती है,
बिजली विभाग वाले फोन नहीं उठाते,
मच्छर आपको उठाने को तैयार बैठे हैं ।

लोग दुखी क्यों हैं?
लोग दुखी हैं ,
क्योंकि ट्रेन में टी टी हैं,
ट्रैफिक लाइट पर पुलिस है,
दफ्तरों में बाबू हैं,
मुहल्ले में साबू है।

लोग दुखी क्यों हैं?
लोग दुखी हैं,
क्योंकि स्कूल हैं,
पर टीचर नहीं हैं,
अस्पताल हैं,
पर डॉक्टर नहीं हैं,
बिजली के खंभे हैं,
पर लाइट नहीं है,
नलकूप हैं,
पर पानी नहीं है,
दवाई की दुकान है,
दवाई नहीं है,
डिग्री है ,
पर काम नहीं हैं,

लोग दुखी हैं
क्योंकि सब कुछ तो है
मगर आराम नहीं है ।

______शाहिद अंसारी 

आपस की बात

तुम कहो कि रूक जाओ,
तो मैं रूक जाता,
तुम कहो तो सही।

पर तुमने कहा,
कि मैं क्यों कहूँ,

हर बार मैं ही क्यों?

जानूँ,
पर मुझे पता कैसे चलेगा?
कि तुम चाहती हो
कि मैं रूक जाउँ,

क्या तुम मेरी आँखें
नहीं पढ़ सकते?
क्या तुम्हें सच में
नहीं दिखती ?
ये बेकरारी
ये दीवानापन

चले ही जाओ तुम।

या खुदा कोई
मुझे बताये
कि तुम्हारे
ऐसा कहने पर मैं कैसे चला जाउँ?

क्या तुम्हें लगता है
कि तुमसे दूर जाना
आसान है मेरे लिए?

तुम्हें पता भी है,
कि तुमसे दूर अकेले में
जब मेरी सिसकियाँ निकलती हैं
तो घर की दीवारें
भी रोती हैं मेरे साथ ।

तुम फरेबी हो
ऐसी झूठी बातें कह कर
मुझे बहला लेते हो,

तुम क्यों रोने लगे भला ?
तुम्हें तो आज़ादी मिल जाती है,
कि चलो बला टली,

जानू
तुमने वो शेर नहीं
सुना है
किसी शायर ने कहा था
"रोने से और इश्क में बेबाक हो गये /
धोये गये हैं इतने कि बस पाक हो गये "

मैं तो इस बाबत
रो लेता हूँ,

हा हा हा
ये शेर कब सीखे तुमने ?

जब मैं नहीं थी तो
किसको सुनाते थे?

तुम मुझे पहले क्यों नहीं
मिले,
कॉलेज में मेरा कोई ब्यावफ्रेंड
नहीं बना,

तुम बन जाते,

हम हाथों में हाथ डाले ,
पार्क में घूमते ,
सिनेमा देखने जाते,
रेस्तरां में खाना खाते,
और खूब प्यार करते ।

अब तो करते ही हैं
हम ये सब,

टूट कर प्यार
प्यार का इज़हार
कभी इकरार
कभी इन्कार
और फिर तक़रार
और फिर प्यार

और तब

तब मैं भी तो ढूँढ रहा था तुम्हें,
तुम कहीं नज़र नहीं आयी,

तुम कह देती
कि कहाँ हो तुम
चले आओ
तो मैं आ जाता,

पहाड़ो को पार करके
एक हाथ में चाँद
एक हाथ में गुलाब लेकर ,

पर पहचानती कैसे मुझे ?
कि मैं ही हूँ?

पहचान नहीं गयी थी
उस दिन तुम्हें हुमायूँ के मकबरे पर
कि तुम ही हो,

हाँ,
ठीक कहती हो ।

मैं देर कर देता हूँ
आने में ,

मैं देर कर देता हूँ
बताने में ,
जताने में ,
सुनाने में,

जोर से हंसने में ,
तुम्हें मनाने में ,

पर यक़ीन मानों
मैं आना चाहता हूँ ,

तुम्हारे बिना कहे,
बिन बुलाये,

सच में?
तो आ जाओ ना।

शनिवार, 19 अगस्त 2017

एक परी मुझसे मिली थी

और शायद हम लोग 
करीब करीब प्यार में पड़ जाएंगे,

मैं उसकी आँखों में देखूँगी 
और वो मेरी आँखों में देखेगा -
मेरी इकलौती आँख ,
(बेचारी दूसरी आँख 
अंधी हो गयी
 एक अनुशासित 
करते थप्पड़ से )

और फिर हम इस बात पर सहमत 
हो जायेंगे और एडजस्ट कर लेंगे 
इस बात पर कि प्यार अँधा हो सकता है ,

और वो , एक स्वस्थ लड़का ,
खाता पीता , सफ़ेद अपने लाल गालों के साथ ,
अचरज करेगा मेरे बारे में ,

तरस खायेगा मेरी हड्डियों वाले शरीर पर ,
और उन पतली पसलियों पर,

और चिंता करेगा 
और महसूस करेगा 
मेरे मुड़े हुए कान 
और मेरे हाथों के घाव 
(जो कि याद है मेरी त्वचा और 
एक क्रूर बेंत की लीला की  )

और शायद फिर मेरी 
स्कर्ट उठाएगा 
इस से पहले की वो जान पाए 
और बड़े आतंक को 

मुझ पर उसको सच बताने का बोझ है 
इसलिए मैं उसको  कहूँगी :

"मैं स्कूल गयी थी" !

लेखिका : मीना कंडासामी 
अनुवाद : शाहिद अंसारी 









बुधवार, 16 अगस्त 2017

सुनो।

Listen!

Listen!
if the stars are lit,
then someone must need them, of course?
then someone must want them to be there,
calling those droplets of spittle pearls? 

And wheezing,
in the blizzards of midday dust,
he rushes to God,
fearing he’s out of time
and sobbing,
he kisses God’s sinewy hands, 

tells Him that it’s important,
pleads to Him that the star must shine!
vowing
that he won’t survive the starless torment!
And later,
he wanders, worried,
though seemingly calm and fit,
and tells somebody:

“Finally, nothing can
frighten you,
right?!”
Listen!
if the stars are lit,
then someone must really need them?
then it is essential
that at least one star
alights
over the rooftops each night?!

By Vladimir Mayakovsky
Translation by Andrey Kneller

सुनो।  

सुनो!
अगर सितारे चमक रहे हैं ,
फिर किसी को तो उनकी ज़रूरत होगी, बेशक?
फिर कोई तो चाह्ता होगा कि वो वहां रहे,
और जो उन बूंदों को पुकार रहा है लार के मोती ?

और दिन की धुल भरी आँधियों की घरघराहट में 
वो भगवान् के पास  
दौड़ता है,
इस डर में कि उसका वक़्त ख़त्म हो रहा है। 

और रोते हुए,
वो भगवान् के मजबूत हाथों को चूम लेता है। 
उनसे कहता है, कि ये ज़रूरी है कि सितारे चमकें 

इस शपथ के  साथ 
कि वो नहीं सह पाएगा बिना सितारों वाली प्रताड़ना। 

और फिर बाद में,
वो भटकता है, चिंतामग्न,
जबकि मालूम होता है कि वो शांत और तंदुरुस्त है ,

और फिर किसी से कहता है:

"आखिरकार, अब कुछ भी 
तुम्हे डरा नहीं सकता 
क्यों? 
सुनो!
अगर सितारे चमक रहे हैं 
फिर किसी को तो उनकी ज़रूरत होगी, बेशक?

इसलिए ये ज़रूरी है कि 
कम से कम 
एक सितारा 
छत के ऊपर ज़रूर चमकता रहे 
हर रात "

द्वारा : ब्लादीमिर मायकोव्स्की 
अंग्रेजी अनुवाद : आंद्रे नेल्लेर 
हिंदी अनुवाद : शाहिद अंसारी

स्त्री के प्रति मनोभाव

Attitude to a Lady

This evening was to decide
were we to fall in love passionately?--
it’s dark,
no one would see us.
I leaned over her actually, 
and actually,
while 
I was leaning,
I said to her
like a kind father : 
“Emotions are steep like cliffs,--
please,
step away farther.
Farther,
step away, please.”

By Vladimir Mayakovsky
Translation by Andrey Kneller

स्त्री के प्रति मनोभाव 

आज की शाम निर्णय करने वाली थी 
कि क्या हम आवेशपूर्ण प्यार करेंगे ?

अँधेरा है, 
कोई हमे नहीं देख पायेगा। 

मैं वास्तव में उसकी तरफ़ झुका 
और सच में ,
जब मैं उसकी ओर झुक रहा था ,

मैंने उस से कहा 
एक पिता की तरह :
" भावनाएं तीखी चट्टानों की तरह होती हैं 
कृपा करके 
कदम दूर खींच लो 
दूर और दूर 
कृपा कर के "

द्वारा :               ब्लादीमिर मायकोव्स्की 
अंग्रेजी अनुवाद :   आंद्रे नेल्लेर 
हिंदी अनुवाद :     शाहिद अंसारी 

शनिवार, 8 जुलाई 2017

तुम और एवेरेस्ट

कागज़ों में तुम्हारी तस्वीर गढ़ना
एवेरेस्ट पर चढ़ने जैसा है ,

उतना ही मुश्किल,
उतना ही समय लेने वाला,

बेस कैंप पर जैसे
पर्वतारोही खुद को तैयार करते हैं
मुझे भी वैसे ही
तुम्हारी तस्वीर मन में बिठा कर
खुद को तैयार करना पड़ता है।

हर कदम
फूँक फूँक कर रखना पड़ता है,

तुम्हारे होंठ बनाते समय
ध्यान रखना पड़ता है,
कि उन पर बनी लकीरें
वैसी ही नज़र आएं।

तुम्हारी आँखों में जो गहराई है
वो किसी पहाड़ी दर्रे को पार करने
जितना रोमांचकारी है।

कागज़ पर कोई कैसे
उतार सकता है वो गहराई ,

वो तो जो डूबा है उनमे
वही जान सकता है।

तुम्हारी लहराती ज़ुल्फ़ें
बनाते वक़्त ऐसा लगता है
जैसे पहाड़ी पर कोई बर्फीला तूफ़ान
आ गया हो।

तुम्हारे चेहरे की चमक
के रंग भरने लगता हूँ
तो इंद्रधनुष नज़र आता है।

सूरज की चमक
कागज़ पर कहाँ उतर पाती है कागज़ पर ।

तुम्हारे बदन के वक्र
पहाड़ की चोटियों
जैसे नज़र आते हैं।

तीखे और फिसलन से भरे ,

जैसे तैसे करके
जब तस्वीर पूरी होती है,
फिर ख़ुशी का आलम ही दूसरा होता है।

तुम और एवेरेस्ट
दोनों ही मुश्किल मुक़ाम हैं।  

सोमवार, 19 जून 2017

एक चुटकी उदासी

देना चाहता हूँ एक चुटकी 
उदासी तुमको भी ,

तुम भी छटांक भर 
ख़ुशी मुझे लौटा देना।  

दिन बड़े छोटे कहाँ 
होते हैं,

दिन तो मीठे और फीके 
होते हैं।  

थोड़ी सी मिठास 
भर जाती है 
अगर तुम्हारा चेहरा नज़र आ जाता है ,

जब दूर हो 
तो बस आवाज़ ही काफी है। 

पर कभी कभी मन नहीं लगता,

ऐसे ही जैसे 
बोरियत हो जाती है,
दिन रात से ,

बैठे रहने से ,
सोते रहने से ,
उठने से ,

चलने फिरने से भी मन ऊब जाता है। 

फिर याद आती है तुम्हारी,
तुम्हारी आँखों की ,
तुम्हारी बातों की,

तुम्हें छूने के पल याद आते हैं। 

फिर नए जीवन की 
कोशिश तो करनी ही होती है। 

इंसान रुक ही तो नहीं सकता ,
रुकना जैसे कोई बहुत भारी चीज़ हो ,

मन करता ही कोई खुद रोक दे ,
पुकार ले ,
किनारे से ,

या फिर कोई नाव लेकर आ जाए।