कुछ पहेलियाँ हैं
काँच के सिक्कों की तरह,
काँच के सिक्कों की तरह,
जिनके आर पार दिखता है,
पर मोल समझ नहीं आया।
पर मोल समझ नहीं आया।
किसी नये तुगलक ने
चलाये हैं काँच के सिक्के,
चलाये हैं काँच के सिक्के,
कहता है कि
रूपया काला हो गया है।
रूपया काला हो गया है।
कुछ दोहे हैं,
गाय के गोबर की तरह,
गाय के गोबर की तरह,
जहाँ गिरते हैं
वहीं रह जाते हैं ।
वहीं रह जाते हैं ।
लिखे तो गये थे
कि पढ़े जायें
लेकिन
सूखने पर जलाने के काम आते हैं ।
कि पढ़े जायें
लेकिन
सूखने पर जलाने के काम आते हैं ।
कुछ लोग हैं
जानवरों की तरह,
जानवरों की तरह,
जो इंसान तो नज़र आते हैं,
पर इंसानी पहचान से महरूम,
पर इंसानी पहचान से महरूम,
नये वक्त में इनकी बहुत माँग है,
काँच के सिक्कों की,
गोबर से दोहों की,
और इंसानी जानवरों की।
गोबर से दोहों की,
और इंसानी जानवरों की।
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