गुरुवार, 8 नवंबर 2018

आखिरी सफ़र

ज़िन्दगी तुम्हारे साथ ऐसे ही गुज़रनी चाहिए
जैसे स्टेशन पे बैठे हम दोनों
एक दुसरे की बातों में डूबे हुए
आखिरी सफ़र तक साथ चलते रहें

दुनिया की सीट का एक कोना
हमारा हो,
जहाँ तुम बैठ सको पाँव ऊपर करके,
और हम देखते रहें बदलते मौसमों को

और एक डस्टबिन हो पास में
जहाँ अपनी सारी परेशानियां हम डंप कर सकें
प्यास लगे तो हो पानी का चश्मा
वहीँ कहीं
जिसके सहारे थकान दिन की तुम मिटा पाओ

हो इंतज़ार किसी बात का तो बस थोड़ा हो
पहुचना हो कहीं तो पुल तो वक़्त बना देगा
हमको इस पार से उस पार भी करा देगा

तुम भी पूछ लेना किसी से की क्या रास्ता है वही
यूँ न हो दौड़ मंज़िल की लगानी पड़े हमको
और तुम कहीं फिर पीछे मेरे रह जाओ
मैं फिर वापस आकर साथ तुमको ले जाऊँगा

यूँ न हो तुम तो सफ़र पर निकल पड़ो तनहा
हम फिर बाहर से इशारे करें तुमको
तुम न देख पाओ मेरे हिलते हुए हाथों को

लौटना ना पड़े हमको अकेले घर की तरफ
फिर उन्हीं रास्तों से जिन पर हम हों साथ चलें
ज़िन्दगी हो तो साथ तुम्हारे
वरना फिर कैसे
ज़िन्दगी कैसे गुज़रेगी सूनी रातों सी

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