ढेर सारी बातें हैं कहने को
पर कभी लगता है कि
सब गैर ज़रूरी हैं जैसे
पर कभी लगता है कि
सब गैर ज़रूरी हैं जैसे
समझ नही आता
दोस्ती के कौन से दायरे में
रहना ज़्यादा ज़रूरी है?
दोस्ती के कौन से दायरे में
रहना ज़्यादा ज़रूरी है?
वो कि जिसमे
सारी उलझने साझा
कर ली जाएँ
सारी उलझने साझा
कर ली जाएँ
या कि वो जिसमे
बस अच्छी बातें हो
बिना किसी ड्रामा के
बस अच्छी बातें हो
बिना किसी ड्रामा के
मुश्किल होता होगा तुम्हारे
लिए भी
है न ?
लिए भी
है न ?
सबसे मुश्किल है
अनकहे का बोझ उठाना
और उसपे ये उम्मीद
अनकहे का बोझ उठाना
और उसपे ये उम्मीद
कि जो नही कहा
वो दूसरों को पता चल जाए
वो दूसरों को पता चल जाए
दरअसल हम बात कम
पहेलियाँ ज़्यादा बुझाते है
पहेलियाँ ज़्यादा बुझाते है
सीधी बातें तक़लीफदेह
होती हैं शायद
होती हैं शायद
याद करना भी एक अलग मुश्किल है
उसमे भी ये लगना की शायद
इसका कोई मतलब नहीँ
उसमे भी ये लगना की शायद
इसका कोई मतलब नहीँ
कभी कभी ये भी लगता है
की कोई फ़र्क़ नही पड़ता होगा
की कोई फ़र्क़ नही पड़ता होगा
दुसरे पल ये बात भी झूठी मालूम
होती है
होती है
उस पर ये वक़्त
जो हमेशा कम पड़ जाता है
जो हमेशा कम पड़ जाता है
जी करता है
थोडा ज़्यादा वक़्त मांग लेते
तुम्हारे लिए
खुद के लिए
थोडा ज़्यादा वक़्त मांग लेते
तुम्हारे लिए
खुद के लिए
पर अधूरा वक़्त ही तो सच्चाई
के ज़्यादा क़रीब है
के ज़्यादा क़रीब है
शायद तुम सब समझती हो
काश मुझे भी यकीन हो जाए
काश मुझे भी यकीन हो जाए
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