गुरुवार, 8 नवंबर 2018

मेरा चाँद

मेरा चाँद सो रहा है,
मेरे चाँद के टुकड़े के साथ,
वो दोनों
एक दूसरे के पास 
बिल्कुल वैसे ही हैं,
जैसे बादल
और बारिश की बूँदें,

रात के सन्नाटे
में घड़ी की टिक-टिक,
धीमी सांसे,
ऊपर नीचे होती छाती,
बिखरे बाल,
और चेहरे पर असीम संतोष,

ये सब कुछ
गवाही दे रहे हैं,
कि सुख परिभाषा में
नहीं ढूँढे जाते,
सुख बस
एक भाव है,
जो थमने पर आता है,

जब हम सोच
पाते हैं,
सोच से परे,
तब दिखते हैं
जिन्दगी के वो आयाम,

जिन्दगी छोटी नींद
से बड़ी नींद तक जाने
का सफर ही तो है,

इसलिए जब मैं
उन्हें सोते देखता हूँ,
तो नज़र आता है
मुझे "पुल सिरात",
जिस पर से होकर
जन्नत की ओर जाना होता है,

कोई टिप्पणी नहीं: